स्वीप क्या है?(सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन)
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां पर 139 करोड़ की लोगों की बड़ी जनसंख्या है। हालांकि, जनता अगर अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को नहीं जानती है तो वो समझदारी के साथ चुनाव नहीं कर पाएगी और गलत कामों को रोक भी नहीं पाएगी।
इसको ध्यान में रखते हुए सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (स्वीप) लांच किया गया था। आइए निम्न सेक्शन के माध्यम से इसे गहराई से समझते हैं।
चुनाव में स्वीप (SVEEP) क्या होता है?
भारत के चुनाव आयोग के शीर्ष प्रोग्राम स्वीप या सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन को मतदाता साक्षरता और मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिए बनाया गया है।
चलिए ये कैसे काम करता है, ये जानने के लिए इसके उद्देश्य, प्रक्रिया और गतिविधियों पर नजर डालते हैं।
स्वीप (SVEEP) के उद्देश्य क्या है?
स्वीप के उद्देश्य निम्न हैं:
स्वीप का अहम उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को चुनाव के बारे में शिक्षित करना है। मतदान की अहमियत की समझ और मतदान करने का सही तरीका सहभागी लोकतंत्र बनाने के लिए जरूरी है। इस तरह से ये एक ऐसा लोकतंत्र हो सकता है जहां सभी योग्य मतदाता चुनाव के दौरान जानकरी भरा निर्णय लेते हैं।
कैंपेन के लिए उनका लक्ष्य भी उनके सामने दीर्घकालीन दृष्टिकोण रखता है। वह जागरूकता और जानकारी के माध्यम से बराबरी लाना चाहते हैं।
स्वीप आम जनता के लिए भारतीय चुनावों की कठिन प्रक्रिया को आसान बनाने की कोशिश करता है। वह उन्हें वो काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो देश के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है।
सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (SVEEP) को कैसे बनाया गया है?
शुरुआती दिनों से वह कोशिश कर रहे हैं कि भारत की आम जनता के लिए चुनावी प्रक्रिया की जरूरी जानकारी मौजूद हो। इसकी सफलता को इसकी शुरुआत से ही मतदाता पंजीकरण की बढ़ती संख्या में देखा जा सकता है।
इस तरह से काम करने के लिए एक संस्था को पद्धतिगत संरचना की जरूरत होती है जिसमें गतिशीलता हो और ताकत भी। चलिए बेहतर समझ के लिए स्वीप की संरचना पर नजर डालते हैं:
राष्ट्रीय स्तर: स्वीप भारतीय चुनाव आयोग का हिस्सा और काम या रूपरेखा का ढांचा है। ये रूपरेखा सुनिश्चित कर सकती है कि जरूरी प्रक्रियाएं वैसे ही हो रही हैं, जैसे उन्हें होनी चाहिए। ये गणतंत्र से जुड़ी शिक्षा प्रक्रिया में भी मदद करता है।
राज्य स्तर: संबंधित राज्य के सीइओ ऑफिस पर ये जिम्मेदारी होती है कि वो अपने एक विश्वसनीय और योग्य अधिकारी को कार्यक्रम की बागडोर संभालने के लिए चुनें। वे लोगों का मौलिक समूह बनाते हैं जो स्वयंसेवकों के तौर पर काम करते हैं। इसमें सिविल सोसाइटी ग्रुप, यूथ ग्रुप, विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि वगैरह सदस्य शामिल होते हैं।
बूथ स्तर: चुनाव आयोग बूथ स्तर के अधिकारी चुनता है। ये अधिकारी एक या दो मतदान केंद्रों के प्रभारी होते हैं और इलेक्टोरल रोल की जिम्मेदारी इन पर होती है।
- जिला स्तर: जिला स्तर पर, जिले का कलेक्टर स्वीप कार्यक्रम लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है। जिला परिषद के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर या चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर जिला स्तर की सभी स्वीप समितियों के पर्यवेक्षक होते है।
स्वीप कैसे काम करता है?
चुनाव आयोग का स्वीप प्रोग्राम कैसे काम करता है, ये समझने के लिए इस प्रक्रिया पर नजर डालते हैं:
तैयारी: इसमें राज्य और जिला स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त करना स्वीप कोर समितियों का गठन, विशिष्ट क्षेत्रों के लिए गैप विश्लेषण, भर्ती अधिकारियों को प्रशिक्षण, पंजीकरण और लिंग अंतर का अध्ययन, युवाओं से संबंधित कट-ऑफ के कारणों का अध्ययन और उन विभिन्न समूहों से संबंधित अध्ययन शामिल हैं जिनकी चुनाव में कम भागीदारी है।
योजना: इसमें राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की योजना शामिल होती है। ये योजना शाखाओं और उद्घाटन, कंटेंट प्लानिंग और रचनात्मक तैयारी, मूल्यांकन का निर्धारण, निगरानी और प्रतिक्रिया की प्रक्रिया, संसाधनों के वितरण, घटनाओं की डेटबुक की व्यवस्था करने वगैरह पर निर्भर होती है।
पार्टनरशिप और कोलेबरेशन: जागरूकता फ़ैलाने के लिए खास संस्थानों और संघठनों के साथ पार्टनरशिप और कोलेबरेशन किया जाता है। वह यूथ एडमिनिस्ट्रेशन, राज्यों के विश्वविद्यालय, पब्लिक सेक्टर यूनिट, शैक्षिक संघों, वाणिज्यिक घराने, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के प्रभावशाली लोगों वगैरह के साथ काम करते हैं।
कार्यान्वयन: स्वीप अपने काम को अविकसित क्षेत्रों में लागू करता है। ये पहले से निर्धारित समूहों पर ध्यान देता है, लिंग संबंधी मुद्दों को हल करने की कोशिश भी करता है। इसके अलावा ये युवाओं की असहमतियों को ठीक करने के साथ शहरी दिक्कतों पर भी बात करता है।
अब, उन गतिविधियों पर बात करते हैं जो लोगों के बीच चुनाव की समझ बढ़ाने में मदद करती हैं।
स्वीप की गतिविधियां क्या हैं?
स्वीप या सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन में उन मतदाताओं को शिक्षित करना शामिल है जो आम जनता को चुनाव के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताने के लिए जिम्मेदार हैं। इन पहलुओं में मतदाता सूची में नाम दर्ज करने की पंजीकरण प्रक्रिया, मृतक और स्थानांतरित व्यक्तियों के नाम हटाना और लोगों के मौजूदा विवरण को सही करना शामिल है।
इसके अलावा, जनता को कई ऑफलाइन और ऑनलाइन सुविधाओं के बारे में शिक्षित करना भी स्वीप का उद्देश्य है। इस सुविधाओं के साथ वो मतदान से जुड़ी जानकारी ले सकते हैं। इस जानकारी में भ्रष्ट कामों को कैसे रोका जाए, मतदान कैसे किया जाए वगैरह भी शामिल है।
नीचे लिखी सूची में चलिए स्वीप की गतिविधियों को जानें:
स्वीप में अख़बारों में प्रकाशन भी शामिल है। ये सार्वजनिक सूचनाएं होती है जिनको स्वीप चुनाव के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी जागरूकता पैदा करने के लिए जारी करता है। उदाहरण के लिए, इसमें स्पेशल समरी रिवीजन (एसएसआर), कैंपेन की खास तारीख़, अंतिम प्रकाशन रोल का विमोचन, एसएसआर का प्रारंभ, ड्राफ्ट रोल का प्रकाशन वगैरह के बारे में बात की जाती है।
आउटडोर मीडिया अभियान भी स्वीप गतिविधियों का हिस्सा हैं। वे राज्य की बसों, मेट्रो डक्ट पैनल, बस कतार आश्रयों, डाकघरों में डिजिटल स्क्रीन आदि में क्लस्टर के तौर पर अभियान चलाते हैं। आमतौर पर, यह संदेश और रचनात्मक लेखन का इस्तेमाल करते हैं।
स्वीप रेडियो जिंगल से जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो को भी माध्यम के तौर पर इस्तेमाल करता है। वो रेडियो चैनल का इस्तेमाल करके खासतौर पर उन ऑडियंस पर ध्यान देते हैं जो पहली बार मतदान कर रहे हैं, जो वरिष्ठ नागरिक हैं, तीसरे लिंग के सदस्य, पीडब्ल्यूडी, सामान्य रूप से महिलाएं और गृहिणियां हैं।
अख़बारों में रंगीन विज्ञापन का प्रकाशन भी जागरूकता अभियान में शामिल है। इसको खास मौकों जैसे लोक सभा और विधान सभा चुनाव, विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण, चुनाव आयोग के खास अभियान वगैरह में विज्ञापित किया जाता है।
इसमें आकाशवाणी/एआईआर के साथ ऑन-एयर प्रोग्राम भी शामिल हैं, जिसमें कई जिलों के उच्च अधिकारी, चुनाव अधिकारी, एसडीएम और डीइओ भाग लेते हैं। ये सुविधा आम जनता के लिए भी खुली रहती है ताकि वो कॉल करके संबंधित सवाल पूछ सकें।
स्वीप शिक्षित करने और जागरूकता फ़ैलाने के लिए सरकारी वेबसाइट का इस्तेमाल करता है क्योंकि इसके विजिटर की संख्या अच्छी खासी होती है।
इस अभियान में डिजिटल स्क्रीन पर स्वीप संदेशों का इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें सभी बसों पर स्थापित किया जाता है।
वे मेट्रो स्टेशन पर कैनोपी और डिस्प्ले बैनर भी प्रदर्शित करते हैं।
स्वीप मतदान से जुड़ी जागरूकता के लिए मतदान केंद्रों के स्थान का इस्तेमाल करता है ताकि मतदाताओं के सीधे संपर्क में आया जा सके।
इस अभियान में सभी सफल बूथ और मदर डेयरी स्टाल पर जागरूकता बैनर लगाना शामिल है।
इसमें नुक्कड़ नाटक जैसे प्रदर्शन भी शामिल हैं जिन्हें वह जिला कार्यालयों के आसपास आयोजित करते हैं।
जागरूकता कार्यक्रम में अख़बार विक्रेताओं के माध्यम से लोगों के बीच पर्चे बांटना और ऑटो रिक्शा पर मुनादी करना भी शामिल है।
स्वीप व्यक्तिगत स्तर पर संदेश भी भेजता है जिसमें व्हाट्सएप के माध्यम से मतदाता जागरूकता जानकारी भेजी जाती है।
इस कैंपेन में पब्लिक यूटिलिटी बिल जैसे पोस्टपेड मोबाइल बिल, इलेक्ट्रिसिटी बिल, वाटर बिल वगैरह के बारे में मटेरियल भी प्रकाशित किया जाता है।
स्वीप में एसएमएस के माध्यम से चुनाव से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर जानकारी भेजना भी शामिल है। इस संबंध में उन्हें टेलीकम्युनिकेशन विभाग से मदद मिलती है।
जागरूकता फ़ैलाने के लिए स्वीप सोशल मीडिया आउटलेट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने से डरता नहीं है और इस तरह से ये ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचता है। फेसबुक से इंस्टाग्राम तक वे हर आउटलेट का इस्तेमाल करते हैं।
यह आर्टिकल सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (स्वीप) क्या है, ये कैसे काम करता वगैरह के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। इससे कोई भी स्पष्ट अनुमान लगा सकता है कि स्वीप कैसे काम करता है। जिसके चलते कोई भी देश के विकास की प्रक्रिया में भाग लेने का इच्छुक हो सकता है।
सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (SVEEP) से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
स्वीप को कब लांच किया गया?
इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया (इसीआई) ने स्वीप को 2009 में लांच किया था।
स्वीप मतदाताओं को वोट देने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से कौन से कार्यक्रम आयोजित करता है?
स्वीप के कार्यक्रम में शामिल है, वाद-विवाद, संगीत प्रतियोगिता, थीम आधारित ड्राइंग प्रतियोगिता, ग्रामीण महिलाओं के लिए पारंपरिक कला प्रतियोगिता और भी बहुत कुछ।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस कब होता है?
इसीआई राष्ट्रीय मतदाता दिवस 25 जनवरी को मनाता है। इसको 2011 से मनाया जा रहा है।